CM Rekha Gupta’s Diwali Crackers Decision: अब सुप्रीम कोर्ट में होगी अंतिम सुनवाई

By: Priyanka Lamba

On: Thursday, October 16, 2025 11:26 AM

Diwali

दीवाली का त्योहार आने वाला है और हर साल की तरह इस बार भी पटाखों पर रोक को लेकर बहस तेज हो गई है। राजधानी में प्रदूषण की गंभीर स्थिति को देखते हुए मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने पटाखों से संबंधित एक बड़ा निर्णय लिया है, जिससे राज्य में घरेलू और बाज़ार दोनों स्तर पर हलचल मच गई है। लोगों में इस फैसले को लेकर समर्थन और विरोध दोनों की आवाजें सुनाई दे रही हैं।

मुख्यमंत्री का यह कदम पर्यावरण की सुरक्षा और जनता के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर उठाया गया है। सरकार का कहना है कि हर साल दीवाली के बाद वायु गुणवत्ता बहुत खराब हो जाती है और दिल्ली सहित कई शहरों में सांस लेने तक की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसी को देखते हुए इस बार राज्य सरकार ने विशेष दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जो अब देशभर में चर्चा का विषय बने हुए हैं।

लेकिन इस निर्णय का विरोध भी उठने लगा है। कई व्यापारी संघों और पटाखा निर्माताओं का कहना है कि यह आदेश उनकी आजीविका और व्यवसाय पर सीधा असर डालता है। उनका कहना है कि पर्यावरण संरक्षण जरूरी है, पर इसके लिए पूरी तरह प्रतिबंध लगाना सही समाधान नहीं है। इसी विवाद के बीच मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने साफ किया है कि सरकार इस निर्णय पर कायम रहेगी, लेकिन अगर कानूनी चुनौती आती है, तो वे इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाएँगी।

Diwali Crackers Decision

राज्य सरकार ने इस बार दीवाली पर पारंपरिक पटाखों पर पूरी तरह रोक लगाने का आदेश दिया है। केवल “हरित पटाखे” यानी ऐसे पटाखे जिनमें प्रदूषणकारी रसायन कम मात्रा में हों, उन्हें सीमित समय और निर्धारित स्थानों पर चलाने की अनुमति दी गई है। इसके लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने विशेष दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

सरकार ने बताया है कि पटाखे बेचने के लिए लाइसेंसधारी दुकानदारों को ही अनुमति दी जाएगी। इन दुकानों को केवल प्रमाणित निर्माताओं के हरित पटाखे ही बेचने होंगे। प्रशासन ने इस पर सख्त निगरानी रखने के आदेश दिए हैं ताकि कोई भी अवैध या अत्यधिक धुएँ वाले पटाखे बाजार में ना बिकें।

इसके साथ ही, राज्य में पटाखे जलाने का समय भी सीमित किया गया है। दीपावली की रात केवल दो घंटे तक ही हरित पटाखे जलाने की अनुमति होगी। पुलिस और स्थानीय प्रशासन को यह सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी दी गई है कि लोग नियमों का पालन करें।

विरोध और व्यापारियों की प्रतिक्रिया

पटाखा व्यापारियों ने कहा है कि इस आदेश से उनके कारोबार पर भारी असर पड़ेगा। उनका दावा है कि सरकार ने अचानक निर्णय लिया है, जिसके कारण उन्हें अपने पुराने स्टॉक का कोई उपयोग नहीं रह गया है। उन्होंने यह भी कहा है कि हरित पटाखों का उत्पादन और वितरण इतना आसान नहीं है, क्योंकि इन्हें बनाने वाले सीमित हैं और उनकी लागत अधिक होती है।

कई उद्योग संघों ने सरकार से आग्रह किया है कि पटाखों पर पूरी तरह रोक के बजाय वैज्ञानिक तरीके से नियमन किया जाए। इसके जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा है कि वे किसी भी प्रकार के समाधान के लिए तैयार हैं, लेकिन “जन स्वास्थ्य” उनके निर्णय की सबसे बड़ी प्राथमिकता है।

सरकार की योजना और आगे की कार्यवाही

राज्य सरकार ने निर्णय से प्रभावित व्यापारियों के लिए राहत योजना भी बनाई है। जो दुकानदार पहले से पुराने पटाखों का स्टॉक रखते हैं, उन्हें सरकार द्वारा विशेष व्यवस्था के तहत नुकसान का अनुमान लगाने और आंशिक आर्थिक सहायता देने का प्रस्ताव दिया गया है। इसके लिए नगर निगम और औद्योगिक विभाग को संयुक्त रूप से काम करने का आदेश दिया गया है।

पर्यावरण विभाग ने भी घोषणा की है कि वह दीवाली के पहले और बाद में प्रदूषण स्तर की जांच करेगा और आंकड़ों को सार्वजनिक करेगा। अगर लोगों की प्रतिक्रिया सकारात्मक रही और वायु गुणवत्ता में सुधार देखा गया, तो इस नीति को स्थायी रूप से लागू करने पर विचार किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुँचने की संभावना

मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा है कि अगर इस निर्णय को लेकर उच्च न्यायालय में चुनौती दी जाती है और मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाता है, तो सरकार वहाँ अपना पक्ष मजबूती से रखेगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह नीति केवल प्रतिबंध नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आवश्यक कदम है।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, तो यह नज़ीर तय करेगा कि राज्यों को किस सीमा तक पर्यावरणीय आपदा के नाम पर औद्योगिक या सांस्कृतिक गतिविधियों पर रोक लगाने का अधिकार है।

निष्कर्ष

दीवाली रोशनी और उत्साह का पर्व है, लेकिन प्रदूषण ने इस उत्सव की चमक पर असर डाला है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता का पटाखा प्रतिबंध निर्णय इस दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। अब देखना यह होगा कि जनता, व्यापारी वर्ग और अदालत इस नीति को किस रूप में स्वीकार करते हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष सफल रहता है, तो यह आने वाले वर्षों में पर्यावरण संरक्षण की नई नीति की नींव रख सकता है।

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